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भक्तामर स्तोत्र – श्लोक 3

बुद्धया विनाऽपि विबुधार्चित-पादपीठ!
स्तोतुं समुद्यत-मति-र्विगतत्रपोहम् |
बालं विहाय जल-संस्थितमिन्दुबिम्ब
मन्यः क इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम् ? ||3||

अर्थ :

हे देवों द्वारा पूजित जिनेश्‍वर ! जिस प्रकार जल में प्रतिबिम्बित बिम्ब को पकड़ना असंभव होते हुए भी, नासमझ बालक उसे पकड़ने का प्रयास करता है, उसी प्रकार मैं अत्यन्त अल्पबुद्धि होते हुए भी आप जैसे महामहिम की स्तुति करने का प्रयास कर रहा हूँ| क्या यह मेरी धृष्टता नहीं है ?

भक्तामर स्तोत्र - यंत्र 3

ऋद्धि : ॐ ह्रीँ अर्हँ णमो परमोहिजिणाणं|

मंत्र : ॐ ह्रीँ श्रीँ क्लीँ सिद्धेभ्यो बुद्धेभ्यः सर्वसिद्धिदायकेभ्यो नमः स्वाहा|

विधि : इस स्तोत्र तथा रिद्धि मंत्र का स्मरण करके और यन्त्र अपने पास रखके, छोटे बच्चो को बुरी नज़र लगी हो तो मंत्रित किया हुआ पानी पिलाने से उसका नाश होता हैं| मंत्रित पानी से द्रश्तिदोश नाश होता हैं|

प्रभाव : दृष्टि रोग अपसरण और जय प्राप्ति होती है|


संदर्भ
1. भक्तामर दर्शन – आचार्यदेव श्रीमदविजय राजयशसूरिजी
2. भक्तामर स्तोत्र – दिवाकर प्रकाशन


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