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अप्रमत्त या प्रमत्त

अप्रमत्त या प्रमत्त

सव्वओ पमत्तस्स भयं,
सव्वओ अप्पमत्तस्स नत्थि भयं

मत्त को सब ओर से भय रहता है, किन्तु अप्रमत्त को किसी भी ओर से भय नहीं रहता

डरता कौन है? जो नियमों का भंग करता है, भूलें करता है, अपराध करता है, उसीको चारों ओर से डर लगता है| इसके विपरीत जो नियमों का पालन करता है, भलें नहीं करता, कदम-कदम पर सावधान रहता है कि कहीं उससे अपराध न हो जाये, वह निर्भय रहता है – उसे कहीं भी किसीसे भय नहीं रहता|

पहला व्यक्ति प्रमादी है और दूसरा अप्रमादी| पहले का जीवन प्रमत्त होने से भयाकुल है – दुःखी है और दूसरे का जीवन अप्रमत्त होने से निश्‍चिन्त है – भयविहीन है – सुखी है|

अब चुनिये आपको कौनसा जीवन पसंद है – प्रमत्त या अप्रमत्त? निश्‍चय ही आप दूसरा जीवन चुनेंगे| ज्ञानियों की भी यही शुभाकांक्षा है कि प्रत्येक साधक अप्रमत्त बने|

- आचारांग सूत्र 1/3/4

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