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कामासक्ति

कामासक्ति

कामेसु गिद्धा निचयं करेन्ति

कामभोगों में आसक्त रहनेवाले व्यक्ति कर्मों का बन्धन करते हैं

पॉंच इन्द्रियों में से चक्षुइन्द्रिय और श्रोत्रेन्द्रिय अर्थात् आँख और कान के विषय ‘काम’ कहलाते हैं – जैसे सुन्दर चित्र, नाटक, सिनेमा, मनोहर दृश्य, नृत्य आदि आँख के विषय हैं और श्रृङ्गाररस की कथाएँ या कविताएँ, फिल्मी गाने, विविध वाद्य, अपनी प्रशंसा, स्त्रियों या पुरुषों का मधुरस्वर, (स्त्रियों के लिए पुरुषों की और पुरुषों के लिए स्त्रियों की मीठी-मीठी बातें) आदि चक्षु एवं कान के विषय हैं| इन विषयों का दिनरात चिंतन करते रहना और इन्हें पाने के लिए उचित-अनुचित कार्य करते रहना ‘कामासक्ति’ का लक्षण है|

शेष घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय के विविध विषय जैसे फूलों की सुगन्ध, मिठाई, मैथुन आदि भोग कहलाते हैं| इनके प्रति आसक्त होकर भी व्यक्ति पाप करने पर उतारू हो जाता है| इनसे कर्मों का बन्धन होता रहता है और प्राणी जन्म-मरण के चक्कर में पड़ा रहता है| अतः साधकों को सावधान करते हुए ज्ञानियों ने कहा है कि कर्मों के बन्धन का मुख्य कारण है – भोगासक्ति या कामासक्ति!

- आचारांग सूत्र 1/3/2

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