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न बद्ध, न मुक्त

न बद्ध, न मुक्त

कुसले पुण नो बद्धे, नो मुत्ते

कुशल पुरुष न बद्ध होता है, न मुक्त

कुशल पुरुष का वर्णन यहॉं आलंकारिक भाषा में किया गया है| जो बद्ध है, वह मुक्त नहीं हो सकता और जो मुक्त है, वह बद्ध नहीं हो सकता | व्यक्ति या तो बद्ध होगा या फिर मुक्त| वह दोनों एक साथ नहीं हो सकता|

इसी प्रकार जो व्यक्ति बद्ध नहीं है, वह मुक्त अवश्य होगा और जो मुक्त नहीं है, वह बद्ध अवश्य होगा; परन्तु यहॉं कुशल पुरुष को दोनों से रहित बताया गया है| कोई बद्ध भी न हो और मुक्त भी न हो – ऐसा कैसे सम्भव है ?

ज्ञानी या दार्शनिक व्यक्ति कभी-कभी ऐसी विचित्र बातें कह जाते हैं, जिनमें विरोध नहीं होता; परन्तु विरोधाभास अलंकार होता है| यहॉं भी ऐसी ही बात है|

कुशल व्यक्ति कामभोगों की आसक्ति में बद्ध नहीं होता; परन्तु अपने कर्त्तव्य से मुक्त भी नहीं होता ! इसी दृष्टिकोण से कहा गया है कि वह न बद्ध होता है, न मुक्त|

- आचारांग सूत्र 1/2/6

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