आयंकदंसी न करेइ पावं
आतंकदर्शी पाप नहीं करता
पापाचरण या असंयम ही सारे दुःखों की जड़ है| जो व्यक्ति सांसारिक प्राणियों के द्वारा अनुभूत विविध दुःखों पर विचार करता है, वह स्वयं अपने को उनसे बचाने के लिए पापों से दूर रखेगा, दुःख के बदले सुख पाने के लिए पुण्य के कार्य करेगा|
दुःख को ‘आंतक’ भी कहते हैं; इसलिए दुःखों पर विचार करनेवाला ‘आतंकदर्शी’ कहलाता है| ज्ञानियों ने कहा है, पुण्य कितना भी करे, पाप नहीं करता – आतंकदर्शी|
- आचारांग सूत्र 1/3/2
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