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आतङ्कदर्शी

आतङ्कदर्शी

आयंकदंसी न करेइ पावं

आतंकदर्शी पाप नहीं करता

संसार में ऐसा कौन प्राणी है, जो दुःखी न हो? कोई न कोई दुःख प्रत्येक जीव के पीछे लगा ही रहता है| जन्म का, मृत्यु का और बुढ़ापे के दुःख तो अनिवार्य है ही; जिस का सबको अनुभव करना पड़ता है; परन्तु इसके अतिरिक्त रोग, शोक, वियोग, अपमान, चोट, जलन, कटु शब्द, करूपता, दुर्गन्ध, बेस्वाद भोजन, कठोर स्पर्श, बन्धन, निर्धनता, तिरस्कार, मालिक की फटकार, दौड़धूप आदि सैकड़ों दुःख हैं; जिनसे प्राणी निरन्तर कष्ट पा रहे हैं, व्याकुलता का अनुभव कर रहे हैं, छटपटा रहे हैं|

पापाचरण या असंयम ही सारे दुःखों की जड़ है| जो व्यक्ति सांसारिक प्राणियों के द्वारा अनुभूत विविध दुःखों पर विचार करता है, वह स्वयं अपने को उनसे बचाने के लिए पापों से दूर रखेगा, दुःख के बदले सुख पाने के लिए पुण्य के कार्य करेगा|

दुःख को ‘आंतक’ भी कहते हैं; इसलिए दुःखों पर विचार करनेवाला ‘आतंकदर्शी’ कहलाता है| ज्ञानियों ने कहा है, पुण्य कितना भी करे, पाप नहीं करता – आतंकदर्शी|

- आचारांग सूत्र 1/3/2

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