post icon

समान भाव रहें

समान भाव रहें

जहा पुण्णस्स कत्थई, तहा तुच्छस्स कत्थई|
जहा तुच्छस्स कत्थई, तहा पुण्णस्स कत्थई|

जैसे पुण्यवान को कहा जाता है, वैसे ही तुच्छ को और जैसे तुच्छ को कहा जाता है, वैसे ही पुण्यवान को

निःस्पृह उपदेशक जैसा उपदेश धनवान को देता है, वैसा ही दरिद्र को भी देता है और जैसा उपदेश दरिद्र को देता है, वैसा ही धनवान को भी देता है| मतलब यह कि उसकी दृष्टि में अमीर-गरीब का कोई भेदभाव नहीं रहता| वह सबको समान उपदेश देता है|

उपदेशक को समभावी बनना चाहिये| उपदेश कोई बेचने की वस्तु नहीं है कि जहॉं अधिक धन मिलता हो, वहीं उत्तम उपदेश दिया जाये और जहॉं कम धन मिले, वहॉं अच्छा उपदेश दिया जाये और जहॉं कम सन्मान मिले, वहॉं साधारण उपदेश से ही काम चला लिया जाये| सभी वर्ग के श्रोताओं के प्रति उपदेशक के समानभाव रहने चाहिये|

- आचारांग सूत्र 1/2/6

Did you like it? Share the knowledge:

Advertisement

No comments yet.

Leave a comment

Leave a Reply

Connect with Facebook

OR