अलं बालस्स संगेणं
बाल (अज्ञानी या मूर्ख) की संगति नहीं करनी चाहिये
इसके विपरीत यदि वह अज्ञानी होगा – मूर्ख होगा तो हममें भी उसका अज्ञान संक्रमित होगा| उसकी मूर्खता के कारण निर्दोष होते हुए भी कभी हम संकटों में फँस जायेंगे| ‘नादान की दोस्ती और जी का जंजाल’ हिन्दी की यह सुप्रसिद्ध लोकोक्ति भी इसी ओर संकेत करती है | इसीलिए मूर्ख मित्र की अपेक्षा विद्धान शत्रु की प्रशंसा की गई है| कहावत है – ‘नादान दोस्त से दाना दुश्मन अच्छा|’
मनस्वियों का कथन है कि यदि सचमुच हमें आत्मकल्याण के पथ पर प्रगति करनी हो – अपना विकास करना हो – आगे बढ़ना हो- उन्नति करनी हो; तो हम कभी भूलकर भी बालजीव के साथ न रहें – मूर्ख की संगति न करें|
- आचारांग सूत्र 1/2/5
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