post icon

पूर्वभव में इलाचीकुमारने आलोचना न ली

पूर्वभव में इलाचीकुमारने आलोचना न ली
वसंतपुर नगर में अग्निशर्मा नामक ब्राह्मण युवक रहता था| उसने अपनी पत्नी के साथ चारित्र लिया| परन्तु परस्पर मोह नहीं टूटा|

उसकी भूतपूर्व पत्नी साध्वी ने एकबार ब्राह्मणकुल का अभिमान किया| उसकी आलोचना लिए बिना ही वह मर कर देवलोक गई| मुनिश्री भी काल करके देव-लोक गये| वहां से मृत्यु पाकर अग्निशर्मा का जीव इलावर्धन नगर में धन्यदत्त सेठ के पुत्र इलाचीकुमार के रूप में उत्पन्न हुआ| पूर्व भव की उसकी पत्नी का जीव कुलमद की आलोचना न लेने के कारण नीच कुल में नट की पुत्री के रूप में उत्पन्न हआ| इलाचीकुमार को पूर्वभव में पत्नी साध्वी के ऊपर स्नेह था व उसकी आलोचना नहीं ली थी| अतः इलाचीपुत्र उत्तमकुल में उत्पन्न होने पर भी लोक लज्जा छोड़कर नटनी के नाच को देखकर उसके साथ गया|

पूर्वभव में इलाचीकुमारने आलोचना न ली
इलाचीकुमार ने एक दिन नटराज को कहा कि, ‘‘अब मैं नट हो गया हूँ, तो मेरे साथ नटनी का विवाह कर दीजिये|’’ नटराज ने कहा कि, ‘‘तुम राजा के पास से इनाम प्राप्त करो, तो तुम्हारे साथ उसका विवाह करुंगा|’’ उसके बाद एक दिन बेनातट के बंदरगाह पर कला देखने के लिये राजा को आमंत्रण दिया गया| नटनी ढोल बजाने लगी| इलाचीपुत्र ने रस्सी पर नाचना शुरु किया| लोगों ने नट की करामात देखकर तालियॉं बजाई| हर्ष से किलकारियॉं करने लगेपरंतु राजा की दृष्टि नटनी पर पड़ी और वह नटनी पर मोहित हो गया| जिससे राजा ने उसे इनाम न दिया| फिर से दूसरी बार, तीसरी बार खेल बताने के लिये कहा| चौथी बार रस्सी पर चढ़ा, परंतु राजा नटनी पर मोहित हो जाने से इलाचीकुमार की मौत चाहता था| इस कारण इनाम न दिया|

पूर्वभव में इलाचीकुमारने आलोचना न ली
रस्सी पर चढ़े हुए उसने एक महल में देखा, तो एक पद्मिनी स्त्री मुनि को मिठाई वहोरने के लिये बिनति कर रही थी और जितेन्द्रिय मुनि आँख की पलक भी ऊंची किये बिना ना-ना कह रहे थे| यह देखकर इलाचीकुमार को अपनी कामवासना के ऊपर फटकार और मुनि के ऊपर अहोभाव जगा| अहोभाव बढ़ते-बढ़ते शुक्लध्यान पर चढ़े हुए इलाचीकुमार ने रस्सी पर ही केवलज्ञान प्राप्त किया| देवों ने साधुवेष अर्पण कर वंदन किया| इलाचीपुत्र केवली ने देशना दी| उसमें उन्होंने कहा कि खुद मैंने पूर्व के तीसरे भव में आलोचना न ली और नटनी के जीव ने भी आलोचना न ली, जिससे यह सारी विडंबनाए हुई| यह सुनकर नटनी को भी जातिस्मरण ज्ञान हुआ, साथ ही तीव्र पश्‍चाताप हुआ और उसने भी केवलज्ञान प्राप्त किया|

यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
Did you like it? Share the knowledge:

Advertisement

No comments yet.

Leave a comment

Leave a Reply

Connect with Facebook

OR