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सम्बन्धों को संभाले

सम्बन्धों को संभाले

पोष्यपोषकः
चाहे ज़िन्दगी कितनी छोटी क्यों न हो परन्तु हम अकेले नहीं जी सकते| हम सम्बन्धों के धागों को बुन लेते हैं| जिन सम्बन्धों से बंधकर थकान, टूटन और घुटन पैदा नहीं होती हो वही सच्चे सम्बन्ध हैं|

जिन सम्बन्धों में स्निग्धता, जीवंतता और सुगंध बनी रहती हो वे ही सच्चे सम्बन्ध हैं| जैसे एक बीज के लिए उचित मात्रा में खाद, पानी, धूप और हवा चाहिए तभी उसका पोषण समय पर हो सकता है| ठीक उसी प्रकार हमें सम्बन्धों के पौधे को विकसित करने के लिए प्रे…विश्‍वास…सहयोग और सहिष्णुता का पोषण जरूरी है|

सम्बन्धों में स्वस्थता रहेगी तो जीवन स्वर्ग बन सकता है|

यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
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