जीवन एक युद्ध है, और उसमें विजयी बनने के लिए साहस एक अमोघ अस्त्र है| दुर्बल और भीरु मानव कभी भी प्रगति के द्वार नहीं छू सकता| जीवन की उन्नति, प्रगति और उच्चतम विकास के लिए साहस मूल आधार है| Continue reading “साहस – जीवन का मूल गुण” »
साहस – जीवन का मूल गुण
जीवन क्षणभंगुर है
बुरी संगत
पवन के पिता जी बड़े परेशान थे| कुछ दिनों से पवन बुरी संगत में पड़ गया था| अंत में उन्हें एक युक्ति सूझी| वे बाजार से कुछ आम खरीद कर लाए| सब आम तो पके हुए और बढ़िया थे, पर एक आम काफी सड़ा हुआ था| Continue reading “बुरी संगत” »
गुरुदेवश्री का आश्वासन
अरे पुण्यशाली मानव! तू वास्तव में धन्यवाद का पात्र है| पाप हो जाना, कोई आश्चर्य नहीं है| मोहनीय कर्म के उदय से किसने कौन-से पाप नहीं किये? क्या मोह ने तीर्थंकर की आत्मा को भी छोड़ा है? क्या उन्होंने अपने पूर्व जीवन में भयंकर पाप नहीं किये? क्या उन पापों से उन्हें सातवी नरक तक नहीं जाना पड़ा? परंतु जीवन की काली-श्याम किताब को धोकर तुझे उज्जवल बनने का मनोरथ हुआ हैं| अतः तू धन्यवाद का पात्र है| तू तो काली किताब का एक-एक पन्ना खोलकर कालिमा को धो रहा है| अतः तू विशेष रूप से धन्यवाद का पात्र है| बालक जैसी सरलता से एक एक पाप निष्कपट भाव से प्रगट कर दे| अरे! आत्मा पर से झिड़क दे इन पापों को| Continue reading “गुरुदेवश्री का आश्वासन” »
दर्शनावरणीय कर्म
आँखों से देखने की शक्ति कम करता हैं,
कानों से सुनने की शक्ति कम करता हैं, Continue reading “दर्शनावरणीय कर्म” »
पूर्वभव में इलाचीकुमारने आलोचना न ली
वसंतपुर नगर में अग्निशर्मा नामक ब्राह्मण युवक रहता था| उसने अपनी पत्नी के साथ चारित्र लिया| परन्तु परस्पर मोह नहीं टूटा| Continue reading “पूर्वभव में इलाचीकुमारने आलोचना न ली” »
आलोचना सब को करनी चाहिए
कहेइ अत्तणो वाहि|
एवं जाणगस्स वि सल्लुद्धरणं परसगासे॥
पानी के त्रस जीवों को जानें-पहचानें
पानी स्वयं अप्काय जीवों का शरीर है| यह अप्काय जीव एकेन्द्रिय है तथा अनगल (बिना छाने) पानी में चलते-फिरते सूक्ष्म त्रस जीव भी बहुत होते है| पोरा वगैरेह बेइन्द्रिय जीव पानी में होते हैं| Continue reading “पानी के त्रस जीवों को जानें-पहचानें” »
जीव विचार – गाथा 1
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रात्रिभोजन न करने के वैज्ञानिक कारण
रात में भोजन, पानी आदि ग्रहण करना जैन धर्म में निषेध हैं| इस निषेध के कई कारण हैं| कीटाणु और रोगाणु जिनको नग्न आंखों से देखना असंभव हैं, वे सूरज की रौशनी में गायब हो जाते हैं, वास्तव में नष्ट नहीं होते; वे छायादार स्थानों में शरण लेते हैं और सूर्यास्त के बाद; वे वातावरण में प्रवेश कर उसे व्याप्त करते हैं और फिर हमारे भोजन में मिल जाते हैं| इस तरह का भोजन उपभोग करने से कीटाणुओं और जीवाणुओ की हत्या होती हैं और बारी में हमारे बीमार स्वास्थ्य का कारण बनते हैं|
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