इच्छाएं कम करो
समता रखो
मेरी समता हर स्थिति में बनी रहे…..जो स्वीकार भाव की क्षमता को बढ़ा सकता है वही सुख-चैन से जी सकता है| Continue reading “समता रखो” »
रत्नत्रय
आलोचना का महत्त्व
जंबुदीवे जा हुज्ज वालुआ, ताउ हुंति रयणाइ| दिज्जंति सत्त खिते, न छुट्टए दिवसपच्छित्तं॥
जंबूद्वीप में जो मेरु वगैरह पर्वत हैं, वे सब सोने के बन जाये अथवा तो जंबूद्वीप में जो बालू है, वह सब रत्नमय बन जायें| वह सोना और रत्न यदि सात क्षेत्र में दान देवें, तो भी पापी जीव इतना शुद्ध नहीं बनता, जितना भावपूर्वक आलोचना करके प्रायश्चित वहनकर शुद्ध बनता है| Continue reading “आलोचना का महत्त्व” »
कषाय-निग्रह
पीछे नहीं…आगे देखिए
अतीत का महत्त्व है इससे इन्कार नहीं है| उसे यूँ ही भुलाकर नहीं रहा जा सकता… परन्तु कदम-कदम पर अतीत की दुहाई देना… उसी से चिपटे रहना स्वयं को खतरे में डालना है| अतीत की स्मृति भले ही रहे परन्तु दृष्टि तो भविष्य की ओर केन्द्रित रहनी चाहिए…| हम क्या थे इसकी अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण यह देखना है कि अब हमें क्या बनना है?
समय के साथ आगे चलना और देखना जरूरी है| पिछले समय से तो मात्र शिक्षा लेनी चाहिए… यदि मनुष्य का पीछे की ओर देखना जरूरी होता तो आँखें आगे की बजाय पीछे होती| कहा जाता है कि भूत के पैर पीछे की ओर उलटे होते हैं… अतः इस बात को याद रखकर आगे बढ़ना|
यह मेरा नहीं है…
यह घर मेरा नहीं है|
संसार की कोई भी जड़ चेतन वस्तु मेरी नहीं है|
क्या है तेरा ? Continue reading “यह मेरा नहीं है…” »