जिंदगी थोड़ी है, समय उससे भी कम| जैसे जैसे समय बीतता है, वैसे वैसे हम मृत्यु के निकट पहुँचते जाते हैं| आँखे खोल कर श्मशान की तरफ जाते हुए मुरदों की तरफ देखो और सोचो कि एक दिन हमारी भी यही हालत होगी| फिर क्यों न हम अनंत भव भटकने के बाद प्राप्त अति दुर्लभ अनमोल मानव भव को सफल बना ले|
क्या आप सुदेव सुगुरु और श्री सर्वज्ञ देव प्रणित सुधर्म का सुयोग पाकर उसे यों ही गंवा देंगे ? मक्खी सड़े गले मैले-कुचेले गंदे पदार्थों में लुभा, पंख फड़फड़ा हाथ मल मल कर अपने प्राण गवा देती है| उसी प्रकार आप भी विषयवासना के कीट बन भोगोपभोग में उलझने से ही जीवन बरबाद कर हाथ मलते रह जायेंगे ?
आंखे बन्द कर लो| अपने हृदय पर हाथ धरो और धड़कते दिल से पूछो कि यदि में मनुष्य हूँ, संसार के सर्व प्राणियों से श्रेष्ठ हूँ तो मेरे जीवन धारण करने का क्या रहस्य है ? मैं इस संसार में क्यों आया हूँ ?
यदि कुछ है पास में तो उस का सदुपयोग करो| शोषणवृत्ति को तिलाञ्जली दे दो| आज तुम्हारे सैंकड़ो भाई बहिन, स्त्री पुरुष बिल-बिला रहे हैं| वे बेचारे मारे लज्जा के अपना हाथ किसी के सामने पसारना नहीं चाहते, वे अपने हृदय की ठण्डी आह किसी दूसरे को जताना नहीं चाहते, वे भीखमंगे दंभी नहीं, वे हैं आपके स्वधर्मी बन्धु आप उनके घरों में जाइये, उन्हें आश्वासन दे उनके दु:खदर्द की कहानी सुनिये, उनसे पूछिये कि आपके बच्चों का क्या हाल है ? उनकी शिक्षा का क्या प्रबंध है ? आपकी आय-व्यय क्या है ? आप बेकार तो नहीं हैं ? आपको रहने का स्थान है या नहीं ? तुम्हारे बच्चों मे धार्मिक संस्कार कितने पनपे ? वे धर्म के काम में, समाजसेवा में हिचकिचाते तो नहीं है ? वे अपना सर्वस्व होमने को तैयार हैं ? वीतराग के उपासकों में वीतरागता की कितनी झलक है ? इतना कार्य आपने किया हो तब तो आपका जीवन सार्थक है| अन्यथा धान्य के कीट धनेरिये में और आप में कोई अंतर है ?
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