इणमेव खणं वियाणिया
प्रतिक्षण अपनी आयु ठीक उसी प्रकार क्षीण होती जा रही है, जिस प्रकार अञ्जलि में रहा हुआ जल क्षीण होता रहता है| धीरे-धीरे एक समय ऐसा आयेगा, जब आयु सर्वथा समाप्त हो जायेगी और हम अपनी अन्तिम सॉंस छोड़ कर सदा के लिए आँखें बन्द कर लेंगे|
जो क्षण, जो घण्टा, जो दिन, जो सप्ताह, जो मास, जो वर्ष और जो युग बीत जाता है; वह कभी लौट कर नहीं आता|
इसलिए बुद्धिमान व्यक्तियों को चाहिये कि वे अपने जीवन का- आपनी आयु का एक भी क्षण व्यर्थ न खोएँ| प्रत्येक क्षण का जीवन की प्रगति के लिए – आत्मिक उत्थान के लिए उपयोग करें| एक समय का भी प्रमाद न करें| जो समय बीत चुका है, सो बीत चुका; परन्तु आगे आने वाले प्रत्येक क्षण का मूल्य समझें | इसी क्षण को जानें|
- सूत्रकृतांग सूत्र 1/2/3/16
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