अणुचिंतिय वियागरे
सोचकर बोलें
मनुष्य पशु-पक्षियों से अधिक बुद्धिमान प्राणी है; इसलिए अपनी सूक्ष्म भावनाओं को प्रकाशित करने के लिए उसने अधिक विकसित भाषा का आविष्कार किया है और विशाल शब्दकोष से उसे समृद्ध किया है|
समृद्ध शब्दकोष के कारण मनुष्य बोलता भी अधिक है और अनेक उलझनें पैदा कर लेता है| उनके जाल में फँसकर वह स्वयं भी दुःखी होता है और दूसरों को भी दुःखी करता है|
वैसे जीवन में संयम की हरएक क्षेत्र में आवश्यकता है; परन्तु सबसे अधिक आवश्यकता वाणी के क्षेत्र में (अनुभव होती) है| यदि मनुष्य की वाणी संयमित हो – नपीतुली हो – सोचकर बोली गई हो तो वह बोलनेवाले को अधिक लोकप्रिय बना देगी| साधुओं के लिए तो वाणी के संयम की और अधिक आवश्यकता है| वे जो कुछ बोलें, पूरी तरह सोच कर बोलें|
- सूत्रकृतांग सूत्र 1/6/25
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