इमेण चेव जुज्झाहि,
किं ते जुज्झेण बज्झओ ?
किं ते जुज्झेण बज्झओ ?
आन्तरिक विकारों से ही युद्ध कर, बाह्य युद्ध से तुझे क्या लाभ?
इसलिए अध्यात्मवादियों का कथन है कि मनुष्य को बाह्य युद्ध से बचना चाहिये| मनुष्य शान्ति चाहता है| युद्ध शान्ति का विरोधी है; इसलिए शान्तिप्रेमियों को युद्ध से दूर रहना ही उचित है|
परन्तु मनोवैज्ञानिकों के अनुसार युद्ध एक मूल प्रवृत्ति है; इसलिए उससे सर्वथा दूर भी नहीं रहा जा सकता | ऐसी अवस्था में क्या किया जाये| अध्यात्मवादियों ने इसका बहुत सुन्दर उत्तर दिया है| उनके अनुसार व्यक्ति को अपने मन से युद्ध करना चाहिये, जिससे कि उसमें विकार पैदा न हो| कहा भी है- ‘‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत|’’
- आचारांग सूत्र 1/5/3
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