लोभमलोभेण दुगंछमाणे
लद्धे कामे नाभिगाहइ
लद्धे कामे नाभिगाहइ
लोभ को अलोभ से तिरस्कृत करनेवाला साधक प्राप्त कामों का भी सेवन नहीं करता
प्रश्न यही है कि लोभ को शान्त कैसे किया जाये – उस पर विजय कैसे पायी जाये ? उत्तर है – अलोभ से यानी सन्तोष से | सन्तोष लोभ का विरोधी है| सन्तोष शान्ति देता है; किन्तु लोभ अशान्ति पैदा करता है| फिर भी लोग लोभ के चक्कर में पड़कर अशान्त बनते ही रहते हैं| इसके विपरीत लोभ को जीतनेवाले साधक तो प्राप्त कामों के सेवन में भी रुचि नहीं रखते; फिर अप्राप्त कामों की तो बात ही क्या है? अतः कहते हैं – शान्ति पाना हो; तो लोभ को छोड़िये|
- आचारांग सूत्र 1/2/2
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