श्री अनंतनाथ जिन स्तवन
राग : कल्याणअरज सुनो प्रभु अनंत जिणंदा
अरज सुनो प्रभु अनंत जिणंदा
अनंत जिणंदा गुणगण कंदा
…अरज. १
मोह सदनका वास निवारो,
प्यारी लगी है मोहे मुक्तिकी छाया.
कदन मदन का झगडा टारो;
बूरी लगी है करमकी माया
…अरज. २
चित्त हरामीको करदो विरामी;
चरण शरण दिल मुझको है भाया.
नामी तुं स्वामी चित्तमें बिराजे;
कर्म भुजंगके भयको भगाया
…अरज. ३
तोरे चरणकमलकी सेवा;
अनुपम मेवा मुक्ति मिलाया.
मिथ्या हरके समकित धरके;
कर्म दिवाले अब है हीलाया
…अरज. ४
ममता तोडी समता जोडी;
आत्म कमल रहे नित्य खिलाया.
लब्धिसूरिकी हरदो भीति;
अमृत पाकर मानुं जिलाया
…अरज. ५
यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
Very nice ! Its so pleasant and soothing to hear this
It very well composed and sung.
Thank You for your comment.
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