शिवभूति और वसुभूति दो भाई थे| शिवभूति की स्त्री कमलश्री अपने देवर वसुभूति के प्रति राग वाली बनी और उसने मोहवश अनुचित याचना की| भाभी के ऐसे अनुचित वचनों को सुनकर वसुभूति विचार करने लगा कि-‘‘ओह ! धिक्कार हो कामवासना को, जो ऐसी अनुचित याचना करवाती है| मुझे तो, किसी भी हालत में कामाधीन नहीं होना है|’’ इस प्रकार वैराग्य उत्पन्न होने पर उसने दीक्षा ग्रहण कर ली| यह बात कमलश्री तक पहुँची| राग के उदय से आर्तध्यान में रहती हुई वह मानसिक और वाचिक पाप की आलोचना लिए बिना ही शुनी (कुत्ती) के रूप में उत्पन्न हुई| Continue reading “कमलश्री कुत्ती, बंदरी बनी” »
कमलश्री कुत्ती, बंदरी बनी
प्रायश्चित की ताकत
केन्सर की गॉंठ हो, फिर भी ऑपरेशन कीया जाए, तो मरीज़ अच्छा हो जाता है| परंतु जो एक छोटा-सा भी कॉंटा पॉंव में रह जाये, तो इंसान को मार डालता हैं| इसी प्रकार बड़े-बड़े पाप जीवन में हो गये हो, तो भी प्रायश्चित-आलोचना के प्रताप से जीव धवल हंस के पंख की तरह निर्मल बन सकता है| Continue reading “प्रायश्चित की ताकत” »
अंजनासुन्दरी
एक राजा की दो पत्नियॉं थी| लक्ष्मीवती और कनकोदरी| लक्ष्मीवती रानी ने अरिहंत-परमात्मा की रत्नजड़ित मूर्त्ति बनवाकर अपने गृहचैत्य में उसकी स्थापना की| वह उसकी पूजा-भक्ति में सदा तल्लीन रहने लगी| उसकी भक्ति की सर्वत्र प्रशंसा होने लगी| ‘‘धन्य है रानी लक्ष्मीवती को, दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय|’’ यह रानी तो सुख में भी प्रभु सुमिरन करती हैंै, धन्य है !!’ Continue reading “अंजनासुन्दरी” »
कामलक्ष्मी और उनके पुत्र केवलज्ञानी बने
लक्ष्मीतिलक नगर में एक दरिद्र वेदसार नामक ब्राह्मण था| उसकी पत्नी का नाम कामलक्ष्मी था| वेदसार ब्राह्मण के वेदविचक्षण नाम का पुत्र था| प्रतिपक्षी राजा ने लक्ष्मीतिलक नगर पर आक्रमण कर दिया| कामलक्ष्मी पानी भरने के लिए नगर के बाहर गई थी| आक्रमण के कारण नगर के दरवाजे बन्द कर दिये| अतः कामलक्ष्मी बाहर ही रह गई| Continue reading “कामलक्ष्मी और उनके पुत्र केवलज्ञानी बने” »
चित्रक और संभूति चंडाल बने
जंगल से एक मुनि गुज़र रहे थे| रास्ता भूल जाने के कारण दोपहर के समय बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े| गाय चराने के लिए आये हुये चार ग्वालों ने इस दृश्य को दूर से देखा| वे नज़दीक आये| मुनि बेहोश थे| होठ सूख गए थे| चेहरा कुम्हला गया था| तृषा का अनुमान कर उन्होंने गाय को दुहकर मुँह में दूध डाला| इससे मुनि होश में आये| कुछ समय के बाद मुनिश्री ने चारों को समझाने का प्रयास करते हुए कहा कि संसाररूपी जंगल में उनकी आत्मा भटक रही हैं| उस दुःख से पार उतरने के लिये एकमात्र साधन है चारित्र धर्म| इस प्रकार का बोध दिया| चारों ने प्रतिबोध पाकर चारित्र ग्रहण किया| उनमें से दो आत्माएं तो उसी भव में केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में चली गई| Continue reading “चित्रक और संभूति चंडाल बने” »
प्रायश्चित देने वाले गुरु कौन होते हैं?
आलोचना का प्रायश्चित देने वाले गुरु पांच व्यवहारों के जानकार होते हैं|
आगम व्यवहारी :- अर्थात् केवलज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी, १४, १०, ९ पूर्वी हो, उनके पास प्रायश्चित लेना चाहिए| Continue reading “प्रायश्चित देने वाले गुरु कौन होते हैं?” »
गुरुदेवश्री का आश्वासन
अरे पुण्यशाली मानव! तू वास्तव में धन्यवाद का पात्र है| पाप हो जाना, कोई आश्चर्य नहीं है| मोहनीय कर्म के उदय से किसने कौन-से पाप नहीं किये? क्या मोह ने तीर्थंकर की आत्मा को भी छोड़ा है? क्या उन्होंने अपने पूर्व जीवन में भयंकर पाप नहीं किये? क्या उन पापों से उन्हें सातवी नरक तक नहीं जाना पड़ा? परंतु जीवन की काली-श्याम किताब को धोकर तुझे उज्जवल बनने का मनोरथ हुआ हैं| अतः तू धन्यवाद का पात्र है| तू तो काली किताब का एक-एक पन्ना खोलकर कालिमा को धो रहा है| अतः तू विशेष रूप से धन्यवाद का पात्र है| बालक जैसी सरलता से एक एक पाप निष्कपट भाव से प्रगट कर दे| अरे! आत्मा पर से झिड़क दे इन पापों को| Continue reading “गुरुदेवश्री का आश्वासन” »
पूर्वभव में इलाचीकुमारने आलोचना न ली
वसंतपुर नगर में अग्निशर्मा नामक ब्राह्मण युवक रहता था| उसने अपनी पत्नी के साथ चारित्र लिया| परन्तु परस्पर मोह नहीं टूटा| Continue reading “पूर्वभव में इलाचीकुमारने आलोचना न ली” »
आलोचना सब को करनी चाहिए
कहेइ अत्तणो वाहि|
एवं जाणगस्स वि सल्लुद्धरणं परसगासे॥
कलावती की कलाईयों का छेदन किया गया
कलावती रानी पूर्वभवमें तोते के दोनों पंख को काटकर खुश हई थी, उसकी आलोचना नहीं ली| उसके बाद क्रम से तोते का जीव राजा बना, उसकी रानी कलावती बनी| एक दिन अचानक रानी के हाथ में कंकण (हाथ के आभूषण) पहने हुए देखकर दासीने पूछा कि, ‘‘ये कहॉं से आये?’’ रानी ने जवाब दिया, ‘‘जो हमेशा मेरे मनमें रहता है और जिसके मन में सदा मैं रहती हूं, रात-दिन जिसे मैं भूला नहीं पाती, जिसको देखने से मेरे हर्ष का कोई पार नहीं होता, उसने ये भेजे हैं|’’ Continue reading “कलावती की कलाईयों का छेदन किया गया” »