
सम्माननं परां हानिं योगर्द्धेः कुरुते यतः
उत्तम पुरुष विकारों से विमुक्त होता हुआ पूजा एवं यश का इच्छुक न बनकर जीवन व्यतीत करता है| तुम्हें कोई भाग्यवान कहे तो फूलो मत… तुम्हें कोई बुद्धिमान या धनवान कहे तो खिलो मत… क्योंकि उनका बुद्धि का तराजू पत्थर तोलने का है… हीरा तोलने का नहीं| ध्वनियों में सबसे मधुर है प्रशंसा की ध्वनि| अतः इस ध्वनि से बचते रहो… कम से कम धर्म के अनुष्ठान तो कीर्ति, यश और प्रशंसा से दूर रहकर ही करें|
करनी ऐसी कीजिए जिसे न जाने कोय|
जैसे मेहंदी पात में बैठी रंग छुपाय॥
काम करना आपका काम है…..बस सिर्फ काम करें…..नाम नहीं चाहें…..धर्म करना आपकी आत्मा का स्वभाव है, तो सम्मान की इच्छा मत करो|
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तीन ‘क’ से बचना चाहिए, ऐसा श्रीरामकृष्ण परमहंस बताते है. कंचन, कामिनी और कीर्ति से बचेगा, वह श्रेय को पायेगा. कंचन और कामिनी से मुक्त हुए ऐसे साधू – सन्यासी को कीर्ति फसाती है.
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DO not wish to be Hounoured
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