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प्रसव विज्ञान

प्रसव विज्ञान
स्त्री को साहित्य, विज्ञान और दर्शन जानने की उतनी आवश्यकता नहीं है, जितनी कि उसे सु-माता बनने की रीति जानने की| जिस जाति में सुमाताओं की संख्या अधिक है, वह जाति उतनी ही उत्तम और श्रेष्ठ है| मानव जीवन के निर्माण में माता का विशेष हाथ रहता है| मॉं का पुत्र पर क्या प्रभाव पड़ता है| यह जानना हो तो प्रसिद्ध महापुरुषों के जीवन चरित्र पढ़िये|

शरीर शास्त्र के विद्वानों का कहना है गर्भ स्थिर होने के बाद ६ महिने तक गर्भस्थ-जीव का केवल शारीरिक विकास होता रहता है, इसके बाद मस्तिष्क का, उसमें मानवी चेतना आने लगती है| फलत: बालक की बाह्य सुन्दरता याने उसका शारीरिक गठन, स्वस्थता और सौंदर्य लाने के लिए गर्भाधान से लेकर प्रथम छ: मास तक प्रयत्न करना चाहिए तथा मानसिक सौंदर्य अर्थात् सुरुचि बुद्धिमत्ता, दया, विवेक आदि गुणों के लिए सातवें मास से जन्म समय तक प्रयत्न करना आवश्यक है|

इच्छा शक्ति में अतुल बल, अनोखा चमत्कार है| इच्छा शक्ति का अर्थ है मनुष्य की मन पसन्द वस्तु का नि:संदेह प्राप्त होना| संतान पर पिता से अधिक प्रभाव माता का पड़ता है| स्त्रियों को चाहिये कि वे इच्छा शक्ति का प्रयोग कर अपने भाग्य को चमकावें|

यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
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