लोभ से कलुषित जीव अदत्तादान (चोरी) करता है
अदत्त वस्तु पर उस वस्तु के स्वामी का ही अधिकार रहता है, किसी अन्य व्यक्ति का नहीं; इसलिए अदत्त को ग्रहण करना अपराध है|
यदि हमें किसी अदत्त वस्तु की अत्यन्त आवश्यकता हो; तो हम उसके स्वामी से मॉंग कर ले सकते हैं| बिना पूछे किसी की वस्तु – चाहे वह कितनी ही साधारण क्यों न हो, उठाना अनुचित है – अन्यायपूर्ण है|
अदत्त के आदान को व्यावहारिक भाषा में चोरी कहते हैं| हम नहीं चाहते कि कोई व्यक्ति हमारी किसी वस्तु को हमसे बिना पूछे ही उठा ले जाये अर्थात् चुरा ले जाये| इसी प्रकार दूसरे भी अपनी वस्तुओं की चोरी पसंद नहीं करते; इसलिए सज्जनता यही होगी कि सब लोग ईमानदारी से रहें – कभी किसी की कोई वस्तु चुराने का प्रयास न करें|
जो ऐसा प्रयास करता है, उसकी आत्मा लोभ से कलुषित रहती है अर्थात् जो लोभी है, वही अदत्तादान (चोरी) करता है|
- उत्तराध्ययन सूत्र 32/26
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इसीलिए लोभ को पाप का बाप बताया गया है. लोभ के वश होकर मनुष्य क्या क्या नहीं करता ? चोरी, लूट, कपट, हिंसा इत्यादि.
क्या किसी दूसरे के दी हुई चीज को अपना कहकर दूसरों को बांटना अदत्तादान है?