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संयम और सुख

संयम और सुख

अप्पं दंतो सुही होई,
अस्सिं लोए परत्थ य

अपने पर नियन्त्रण रखनेवाला ही इस लोक तथा परलोक में सुखी होता है

संयम सुख का स्रोत्र है| अपनी समस्त मनोवृत्तियों पर अंकुश रखना संयम है| मनोवृत्तियॉं चंचल होती हैं – क्षणिक होती हैं| उन पर अंकुश कौन रख सकता है?

इस प्रश्‍न का उत्तर है – विवेक| सारी मनोवृत्तियॉं विवेक सम्राट के अंकुश में या साम्राज्य में आसानी से रह सकती हैं| विवेक का नियन्त्रण हटते ही प्राणी को वे मनोवृत्तियॉं नचाने लगती हैं और जीवन-भर वह नाचता ही रहता है| ऐसा व्यक्ति न इस लोक में सुखी रह सकता है और न परलोक में ही|

इसके विपरीत जिसकी मनोवृत्तियॉं विवेक के वश में रहती है अर्थात् जो प्रत्येक कार्य पूरी तरह सोच-समझ कर ही करता है, मन की लहर से नहीं – दिशा निश्‍चित होने पर ही जो मार्ग पर कदम बढ़ाता है – थोड़ी मात्रा में कोई वस्तु प्राप्त होने पर भी मन को सन्तुष्ट रखता है; ज्ञानी कहते हैं कि अपने आप पर नियन्त्रण रखने वाला ऐसा संयमी पुरुष इस लोक में भी सुखी होता है और परलोक में भी|

- उत्तराध्ययन सूत्र 1/15

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