इच्छा आकाश के समान अनन्त होती है
इसलिए कि हम कुछ चाहते हैं|
इसका अर्थ?
अर्थ यही कि इच्छा स्वयं दुःख है!
जब तक इच्छा है, दुःख है|
जिसमें भी इच्छा है, दुःखी है|
इच्छा का जन्म क्यों होता है ?
अपने भीतर अभाव की अनुभूति से|
इस अनुभूति का कारण?
आत्मा के वास्तविक स्वरूप का अज्ञान|
स्वरूप?…अनन्तानन्दमय !
जब तक आत्मा के इस वास्तविक स्वरूप का अज्ञान रहता है, व्यक्ति बाहर सुख की खोज में भटकता रहता है| इसके लिए वह विषयों की शरण में जाने का प्रयास करता है, जहॉं सुख नहीं, केवल सुख का आभास है, अस्थायी या अचिरस्थायी सुख है| फिर विषयों से मन तृप्त कहॉं होता है? एक इच्छा के बाद दूसरी और छोेटी इच्छा के बाद बड़ी उत्प होती ही रहती है| इच्छा की पूर्ति का प्रयास इसीलिए विफल रहता है|
उपर देखिये !
आकाश कैसा है ?
अनन्त है – न कहीं ओर है, न छोर !
इच्छा भी वैसी ही अनन्त है|
- उत्तराध्ययन सूत्र 6/48
if we dont accept anything from others we will be happy.
if we have more acceptance from others we will be always unhappy.
this the law of life.
Please let me know which Agams (Like Uttaradhayn, Sutrakritang etc) you have in “HINDI”.
When we expect from others and we get it means we are happy
other we are unhappy