खणमित्तसुक्खा बहुकालदुक्खा
विषयभोग क्षणमात्र सुख देते हैं, किंतु बहुकाल पर्यन्त दुःख देते हैं
जो सुख आता-जाता रहता है, वह क्षणिक होता है और विषय-सामग्री के भोग से प्राप्त होता है| क्षणभर के लिए हमें विषय-भोग सुखी बनाते हैं- सुखका अनुभव कराते हैं, परन्तु फिर चिरकाल पर्यन्त दुःख का अनुभव कराते रहते हैं|
ज्ञानी कहते हैं कि एक सुख और होता है – आध्यात्मिक सुख, जो बिना किसी बाह्य सामग्री के भीतर से प्राप्त होता है और चिरस्थायी होता है| वह आत्मस्वरूप को भली भॉंति समझने से और उस पर गहराई से चिन्तन करने से प्राप्त होता है| प्रयास करने पर प्रत्येक व्यक्ति उसे पा सकता है| हमें उसी को पाने के लिए प्रयत्न करना है, विषयभोगजन्य क्षणिक सुखों को नहीं|
- उत्तराध्ययन सूत्र 14/13
जीवन सुख-दुख की पूर्वजन्मउपार्जित गठड़ी हैं.