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साधुओं की प्रसन्नता

साधुओं की प्रसन्नता

महप्पसाया इसिणो हवंति

ऋषि सदा प्रसन्न रहते हैं

जीवन में परिस्थियॉं कभी अनुकूल रहती हैं और कभी प्रतिकूल | प्रतिकूल परिस्थियों में जो धीरज खो देते हैं अर्थात् जिनका मानसिक सन्तुलन नष्ट हो जाता है, वे प्रसन्न नहीं रह सकते| जो अपने मन को क्षणिक सुख देनेवाली विषय-सामग्री एकत्र करने में लगा देते हैं, वे भी सदा अशान्त रहते हैं| तृष्णा की आग भी मन की शान्ति को जला कर राख कर देती है| तृष्णा के कारण लखपति करोड़पति और करोड़पति अरबपति बनना चाहता है और जो अरबपति है, वह देश का मालिक बनना चाहता है| देशका मालिक भी पूरे विश्‍व पर अधिकार जमाना चाहता है| इस प्रकार तृष्णा कभी मनुष्य को चैन की बॉंसुरी नहीं बजाने देती|

ऋषी-मुनि-साधु-सन्त प्रतिकूल परिस्थितियों में अधीर नहीं होते – अपने मानसिक संतुलन को नष्ट नहीं होने देते-मन को विषय-सामग्री जुटाने में न लगाकर सद्गुणसंग्रह में लगाते हैं- तृष्णा से सदा दूर रहते हैं| इस प्रकार शान्ति नष्ट करनेवाला-व्याकुल बनानेवाला कोई कारण न रहने से वे सदा हँसमुख रहते हैं – प्रसन्न रहते हैं|

- उत्तराध्ययन सूत्र 12/31

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1 Comment

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  1. Sanjay
    अक्तू॰ 15, 2012 #

    Marvelous!!!

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