अप्पा मित्तममित्तं य, सुप्पट्ठियदुप्पट्ठियो
सदाचार-प्रवृत्त आत्मा मित्र है और दुराचारप्रवृत शत्रु
सुप्रवृत्ति आत्मा को ऊँचा उठाती है – सद्गति में ले जाती है और दुष्प्रवृत्ति आत्मा को नीचे गिराती है – दुर्गति में ले जाती है|
शुभप्रवृत्ति या सदाचार की प्रेरणा सद्भाव से मिलती है और अशुभ प्रवृत्ति या दुराचार की प्रेरणा दुर्भाव से|
सद्भाव और दुर्भाव की जन्मभूमि मन है, जिसे अन्तःकरण या अन्तरात्मा कहते हैं|
अन्तरात्मा विकृत होकर जब दुर्भावों द्वारा प्राणी को दुर्गति में ले जाती है, तब वह अपनी शत्रु है|
इसके विपरीत शुद्ध रहकर जब सद्भावों द्वारा वह प्राणी को सद्गति की ओर ले जाती है, तब अपनी मित्र है| इस प्रकार आत्मा ही अपना मित्र है और वही अपना शत्रु|
- उत्तराध्ययन सूत्र 20/37
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