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अकिंचनता का अनुभव

अकिंचनता का अनुभव

तण्हा हया जस्स न होइ लोहो,
लोहो हओ जस्स न किंचणाइ

जिसमें लोभ नहीं होता, उसकी तृष्णा नष्ट हो जाती है और जो अकिंचन है, उसका लोभ नष्ट हो जाता है

‘किंचन’ का अर्थ है – कुछ| जो समझता है कि इस दुनिया में अपना कुछ नहीं हैं, जो सोचता है कि जन्म लेते समय हम अपने साथ कोई वस्तु नहीं लाये थे और मरते समय भी अपने साथ कुछ आने वाला नहीं है – सारा धन, खेत, मकान आदि यहीं छूट जाने वाले हैं – जो जानता है कि आत्मा के अतिरिक्त समस्त वस्तुएँ जड़ हैं – क्षणभंगुर हैं, वही ‘अकिंचन’ है|

ऐसा व्यक्ति लोभी नहीं हो सकता अर्थात् जो अकिंचन है, उसका लोभ सर्वथा नष्ट हो जाता है|

इस क्रम में आगे चल कर ज्ञानी कहते हैं कि जिसमें लोभ नहीं होता अर्थात् जो व्यक्ति अपनी सम्पत्ति को अधिक से अधिक बढ़ाने के लालच में नहीं पड़ता – निन्यानबे के फेर में नहीं पड़ता, उसकी तृष्णा नष्ट हो जाती है|

इस प्रकार तृष्णा का नाश करने के लिए लोभ का अभाव आवश्यक है और लोभ के अभाव के लिए मन में अकिंचनता का अनुभव !

- उत्तराध्ययन सूत्र 32/8

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1 Comment

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  1. rima
    नव॰ 21, 2011 #

    very true n ultimate

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