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त्रास मत दो

त्रास मत दो

न य वि त्तासए परं

किसी भी अन्य जीव को त्रास मत दो

कष्ट ! कितनी बुरी वस्तु है यह| नाम सुनकर भी मन को कष्ट की अनुभूति होने लगती है| कौन है, जो चाहेगा ? कोई नहीं|

परन्तु यदि आ ही जाये तो? तो दीन व्यक्ति रो-रोकर भोग लेंगे इसे; परन्तु ज्ञानी व्यक्ति इसे निर्जरा का कारण मानकर साहस – पूर्वक सह लेंगे|

फिर भी यह बात निश्‍चित है कि कोई व्यक्ति कष्टों की कामना नही करता| सभी प्राणी सुखी बनना पसन्द करते हैं; दुःखी बनने की इच्छा कोई नहीं करता|

दुःख, सन्ताप, परीषह, वेदना, कष्ट, त्रास आदि जिस प्रकार हमें प्रतिकूल लगते हैं – अप्रिय लगते हैं – अरुचिकर लगते हैं| वैसे ही वे दूसरे प्राणियों को भी प्रतिकूल, अप्रिय एवं अरुचिकर लगते हैं|

इसीलिए वीतराग देवों ने परामर्श दिया है – आदेश दिया है – उपदेश दिया है कि किसी भी अन्य जीव को कभी त्रास मत दो|

- उत्तराध्ययन सूत्र 2/20

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