दोसस्स हेउं अमणुमाहु
मनोज्ञ शब्दादि राग के और अमनोज्ञ द्वेष के कारण कहे गये हैं
कोमल प्रशंसात्मक शब्द हमें अच्छे लगते हैं और कठोर निन्दात्मक शब्द बुरे| सुन्दर रूप आँखों को सुहाता है, असुन्दर नहीं सुहाता| जीभ स्वादिष्ट भोजन प्राप्त करने के लिए सदा लपलपाती रहती है और कडुए बेस्वाद बासी भोजन से घृणा करती है| नाक को सुगन्धित फूल, इत्रादि पसन्द आते हैं; दुर्गन्धित वस्तुएँ उसे पसन्द नहीं आतीं| चमड़ी को कोमल शीतल वस्तुओं को छूने में सुख का अनुभव होता है और कठोर या उष्ण वस्तुओं से वह दूर रहना चाहती है – ऐसी वस्तुएँ छूने से उसे दुःख का अनुभव होता है|
इसका आशय यही है कि सुन्दर या आकर्षक शब्दादि जिन व्यक्तियों अथवा वस्तुओं के निमित्त से प्राप्त होते हैं, उनके प्रति प्राणी के मन में राग पैदा हो जाता है और अरोचक शब्दादि की प्राप्ति जिनसे होती है, उनके प्रति उसके मन में द्वेष पैदा हो जाता है|
- उत्तराध्ययन सूत्र 32/36
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