नत्थि चरित्तं सम्मत्तविहूणं
सम्यक्त्व के अभाव में चारित्र नहीं हो सकता
शास्त्रों के द्वारा अथवा अपने अनुभवों के द्वारा जब हमें यह ज्ञान हो जाता है कि सदाचार का फल अच्छा होता है और दुराचार का बुरा, तब निश्चय ही हमें सदाचार पर विश्वास होगा और दुराचार पर अविश्वास|
सदाचार पर विश्वास ही सम्यग्दर्शन या सम्यक्त्व कहलाता है| वह प्रत्येक व्यक्ति, जो अपने जीवन को सुधारना चाहता है – आत्मशुद्धि द्वारा सिद्धि पाना चाहता है, सम्यक्त्व को अपनाता है; क्यों कि वह भलीभॉंति जानता है कि सम्यक्त्व के अभाव में चारित्र नहीं हो सकता|
- उत्तराध्ययन सूत्र 28/26
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