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सम्यक्त्व के अभाव में

सम्यक्त्व के अभाव में

नत्थि चरित्तं सम्मत्तविहूणं

सम्यक्त्व के अभाव में चारित्र नहीं हो सकता

सम्यक्त्व का अर्थ है – सम्यक् पर श्रद्धा| सदाचार क्या है और दुराचार क्या? – अच्छे आचरण का फल कैसा होता है; बुरे आचरण का कैसा? – किसने किस समय कैसा आचरण किया और उसे कब कैसा फल प्राप्त हुआ? यही बताने के लिए विभिन्न धर्मशास्त्र रचे जाते हैं, जिससे कि शास्त्रीय स्वाध्याय करनेवाले या शास्त्रीय प्रवचन सुननेवाले दुराचार से दूर रहकर सदाचार को अपनाने की – जीवन में उतारने की प्रेरणा ग्रहण कर सकें|

शास्त्रों के द्वारा अथवा अपने अनुभवों के द्वारा जब हमें यह ज्ञान हो जाता है कि सदाचार का फल अच्छा होता है और दुराचार का बुरा, तब निश्‍चय ही हमें सदाचार पर विश्‍वास होगा और दुराचार पर अविश्‍वास|

सदाचार पर विश्‍वास ही सम्यग्दर्शन या सम्यक्त्व कहलाता है| वह प्रत्येक व्यक्ति, जो अपने जीवन को सुधारना चाहता है – आत्मशुद्धि द्वारा सिद्धि पाना चाहता है, सम्यक्त्व को अपनाता है; क्यों कि वह भलीभॉंति जानता है कि सम्यक्त्व के अभाव में चारित्र नहीं हो सकता|

- उत्तराध्ययन सूत्र 28/26

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