जो परिभवइ परं जणं,
संसारे परिवत्तई महं
संसारे परिवत्तई महं
जो दूसरे मनुष्य का परिभव (तिरस्कार) करता है, वह संसार में भटकता रहता है
जो दूसरों को तुच्छ समझता है, दूसरे उसे तुच्छ समझते हैं| जो दूसरों को अपमानित करता है, दूसरे उसीको अपमानित करते हैं| जो दूसरों की निन्दा करता है, दूसरे उसकी निन्दा करते हैं| इससे लाभ कुछ नहीं पर हानि अधिक होती हैं|
जिसकी हम निन्दा करते हैं, वह यदि चाहे तो अपने दोषों को सुधार कर पवित्र बन सकता है; परन्तु निन्दक का इससे क्या लाभ? उसकी तो निन्दा से हानि ही हानि है| निन्दा करने से उसकी जिह्वा तो खराब होगी ही, उसका जीवन भी बर्बाद हो जाता है| ऐसा व्यक्ति दूसरों का तिरस्कार करके इस सुविशाल संसार में भटकता रहता है|
- सूत्रकृतांग सूत्र 1/2/2/1
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