स्याद्वाद से युक्त वचनों का प्रयोग करना चाहिये
‘स्याद्वाद’ एक दार्शनिक सिद्धान्त है| ‘स्यात्’ का अर्थ अपेक्षा है; इसलिए इसे सापेक्षवाद भी कह सकते हैं| वैसे किसी एक बात का आग्रह न होने से यह ‘अनेकान्तवाद’ के नाम से ही दुनिया में अधिक प्रसिद्ध है|
अपेक्षाभेद से वस्तु में अनेक गुणधर्म होते हैं – इस बात को मानने और प्ररूपित करने वाले अनेकान्तवाद के समर्थक हैं| एकान्तवादी एक ही दृष्टिकोण से वस्तु को देखते हैं और भूल जाते हैं कि अन्य दृष्टिकोण से वह वस्तु अन्य प्रकार की भी दिखाई दे सकती है| अनेकान्तवादी ऐसा दुराग्रही नहीं होता|
वह जानना है कि द्रव्यदृष्टि से जो वस्तु नित्य कहलाती है, वह पर्यायदृष्टि से अनित्य भी होती है| मुकुट को तुड़वा कर हार बनवाया जाये और फिर हार तुड़वा कर कङ्गन, तो मुकुट और हार के रूप में वस्तु अनित्य हो कर भी सोने के रूप में वह नित्य ही है| यही बात सिद्धान्तों के विषय में लागू होती है| भूखे के लिए जो भोजन अच्छा है, वही बीमार के लिए बुरा भी है| एकान्तवादी ‘ही’ का प्रयोग करता है तो अनेकान्तवादी ‘भी’ का सच्चाई की खोज तभी हो सकती है, जब हम अनेकान्तवादी बनें|
- सूत्रकृतांग सूत्र 1/14/22
Very nice
Best way to be positive and avoid disappointment n fights by considering everybody’s view