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मुखरता से बचें

मुखरता से बचें

मोहरिए सच्चवयणस्स पलिमत्थू

मुखरता सत्यवचन का विघाता करती है

अधिक बोलने वाले के पेट में कोई बात टिक नहीं पाती – मुखरता को इसीलिए त्याज्य माना गया है| इसे त्याज्य मानने का एक कारण और भी है – सत्य वचन का विघात|

बोलनेवाले अधिकतर बोलने में ही अपने कर्त्तव्य की इतिश्री मान बैठते हैं और करने का कोई उत्तरदायित्व नहीं उठाते| जब वे अपने वचन का पालन नहीं करते; तब कैसे कहा जा सकता है कि उनका कथन सत्य है? ये लोग जहॉं तहॉं आश्‍वासन दे बैठते हैं और लोगों की तात्कालिक प्रशंसा प्राप्त कर लेते हैं, परन्तु आश्‍वासनों को पूरा न करने पर-वचनों का पालन न करने पर लोगों से निन्दा भी पाते हैं| इस प्रकार उन्हें जो प्रशंसा मिलती है; वह स्थायी नहीं होती| अच्छा यह होगा कि हम अपनी शक्ति और योग्यता को पहचान कर जितना भी कार्य कर सकते हों, उतनी ही बात कहें – झूठे आश्वसन न दें और इस प्रकार सत्यवचन का विघात करनेवाली मुखरता से बचें|

- स्थानांग सूत्र 6/3

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