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सादि सान्त

सादि सान्त

सरीरं सादियं सनिधणं

शरीर सादि है और सान्त भी

इस जगत् के समस्त पदार्थ इन चार विभागों में विभाजित किये जा सकते हैं :-
1) अनादि अनन्त
2) अनादि सान्त
3) सादि अनन्त
4) सादि सान्त

पहले भंग में जीव, धर्म, अधर्म, आदि ऐसे पदार्थ आते हैं, जिनकी न आदि है और न जिनका अंत ही|

दूसरे भंग में कर्म आते हैं, जो अनादि काल से आत्मा के साथ चिपके हुए हैं; किंतु निर्जरा के द्वारा उन्हें अलग किया जा सकता है|

केवलज्ञान, मोक्ष आदि तीसरे भंग में आते हैं, जिनकी आदि तो है; परंतु जिनका अन्त कभी नहीं होता| एक बार जिसे केवलज्ञान प्राप्त हो जाता है, वह सदा के लिए सर्वज्ञ बना रहता है – कभी अकेवली या असर्वज्ञ नहीं होता| यही बात मोक्ष के लिए भी कही जा सकती है| प्राप्त होने के बाद मोक्ष कभी नहीं छिनता; इसलिए वह सादि अनन्त है|

चौथे भंग में शरीर आता है| यह पैदा होता है – बड़ा होता है – बूढ़ा होता है और मर जाता है अर्थात् आत्मा से रहित होने पर यही जला दिया जाता है; इसलिए वह सादि- सान्त है|

- प्रश्‍नव्याकरण 1/2

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1 Comment

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  1. Pranshuk Kathed
    मार्च 31, 2018 #

    Since body has a beginning as well as an end, omniscient have said to not to get ourselves involved in the futile body and sense pleasures rather should practice self denial. We should aim and work in the direction of achieving the eternal peace and happiness(Moksha).

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