हँसते हुए नहीं बोलना चाहिये
इसे मूर्खता क्यों माना गया है? विचार करने पर मालूम होता है कि उस अवसर पर बोलने का उद्देश्य होता है – दूसरों को हँसाना| हँसते हुए बोलने से शब्दों का स्पष्ट उच्चारण नहीं होता| स्पष्ट उच्चारण न होनेसे सुनने वालों के पल्ले कुछ नहीं पड़ता| वे बोलनेवाले का आशय ही नहीं समझ पाते| बोलनेवाले को हँसता हुआ देखकर उसके अनुकरण में भले ही वे कुछ हँस जायें; परन्तु बात पूरी समझ में न आने से उन्हें वास्तविक हँसी नहीं आ पाती| इस प्रकार बोलने का उद्देश्य ही नष्ट हो जाता है|
इसलिए प्रत्येक समझदार व्यक्ति को इस मूर्खता से दूर रहना चाहिये, इस असभ्यता से बचना चाहिये|
मान लीजिये दूसरों को हँसाने के लिए हम कोई छोटी सी कथा या चुटकुला अथवा हास्यरस की कोई कविता सुनाना चाहते हैं; तो पहले बोलें, फिर हँसे या पहले हँस लें, फिर बोलें; परन्तु कभी बोलते हुए न हँसें या हँसते हुए न बोलें!
- दशवैकालिक सूत्र 7/54
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