नो वयणं फरूसं वइज्जा
वाणी भी दो तरह की होती है – कठोर और कोमल| क्रोध और क्रूरता में वाणी कठोर निकलती है तथा विनय और शान्ति में कोमल | करुणा, दया, सहानुभूति, प्रेम, ममता, मोह, स्नेह और माया की वाणी कोमल होती है| इसके विपरीत निष्ठुरता, निर्दयता, द्वेष, क्रोध आदि में वाणी कठोर निकलती है|
कोयल और मयूर की बोली सब पसंद करते हैं, किंतु कौए और गधे की वाणी कोई पसन्द नहीं करता| इसका कारण यही है|
व्यक्तिको भी प्रकृति से कोमल वाणीका पाठ सीखना चाहिये| कठोर वाणी बोलनेवाला अपने चारों ओर शत्रुओं की सृष्टि कर लेगा; किंतु कोमल वाणी बोलनेवाला सदा अपने मित्रों से घिरा रहेगा| कोमल वाणी में एक आकर्षण है, कठोर वाणी में घृणा| उपदेशक की वाणी तो हमेशा कोमल ही होनी चाहिये, जिससे कि उससे आकर्षित होने वाले श्रोतोओं के मन में उपदेश अच्छी तरह जमाया जा सके | उसे कभी नहीं बोलनी चाहिये कठोर वाणी!
- आचारांग सूत्र 2/1/6
No comments yet.
Leave a comment