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आत्मवत् देखो

आत्मवत् देखो

आयओ बहिया पास

अपने समान ही बाहर (दूसरों को) देख

ज्ञानियों ने पापों से – सब प्रकार के दुराचरणों से बचने का एक अत्यन्त सरल उपाय सुझाया है, जिसके द्वारा हम पुण्य-पाप का-अहिंसा-हिंसाका-धर्माधर्म का निर्णय भी कर सकते हैं और बुराइयों से बच भी सकते हैं|

कौन-सा उपाय है वह ? जानने के लिए आप उत्सुक हो रहे होंगे| वह है – आत्मवत् दृष्टि अर्थात् अपने समान दूसरों को देखना| यदि कोई हमें धोखा दे – ठगे तो दुःख होता है| इसी प्रकार दूसरों को भी होता है | यह जान लेने पर हम दूसरों को धोखा देने या ठगने का प्रयास कैसे कर सकते हैं ? कोई हमारे साथ मारपीट करे या हमारी संपत्ति चुरा ले जाये तो हमें बुरा लगता है, वैसे ही दूसरों को भी लगता है – ऐसा जानने वाले न दूसरों के साथ मार-पीट कर सकते हैं और न दूसरों की सम्पत्ति ही चुरा सकते हैं| जैसे हमें मृत्यु अप्रिय लगती है, वैसे ही जगत् के सभी जीवों को लगती है| इसीलिए वीतरागदेव कहते हैं, सभी जीवों को अपने समान समझो – हिंसा से बचने के लिए सब प्राणियों को आत्मवत् देखो|

- आचारांग सूत्र 1/3/3

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1 Comment

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  1. Toral shah
    मार्च 15, 2016 #

    Yes very true. All are aatmas like I am. So all jeevs are one and same

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