पुरिसा! सच्चमेव समभिजाणाहि
हे पुरुष! तू सत्य को ही अच्छी तरह जान ले
दुनिया में जानने योग्य बहुत-सी बातें हैं| भूगोल, खगोल, भूगर्भ, गणित, इतिहास, भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र, राजनीति, अर्थशास्त्र, कोष, व्याकरण, छन्द, काव्य, अलंकार, रस, ललितकलाएँ, ज्योतिष, सामुद्रिक, शकुन, साहित्य विभभिन्न देशों की विभिन्न भाषाएँ, विविध लिपियॉं, संगीतशास्त्र, नीति, दर्शन, न्याय आदि सैकड़ों विषय हैं|
एक-एक विषय का ज्ञान इतना विशाल है कि पूरा जीवन निकल जाने पर भी वह पूरा नहीं जाना जा सकता| थोड़ा-थोड़ा सब का ज्ञान सन्तोष नहीं दे सकता – इस प्रकार ‘पल्लवग्राही पाण्डित्यम्’ से अशान्ति बनी ही रहती है|
ज्ञानी कहते हैं कि इन सब विभिन्न विषयों को जानने की खटपट करने की अपेक्षा आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास अधिक अच्छा है| इस ज्ञान में सन्तोष और सुख शीघ्र प्राप्त होते हैं| आध्यात्मिक ज्ञान ही सच्चा ज्ञान है-आध्यात्मिक विषय ही सच्चा विषय है – सच्चाई है| सन्तोष के लिए केवल सच्चाई को जानिये|
- आचारांग सूत्र 1/3/3
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