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आतुरता

आतुरता

आतुरा परितावेंति

आतुर परिताप देते हैं

जो व्यक्ति आतुर होते हैं अर्थात् कामातुर या विषयातुर होते हैं, वे दूसरों को परिताप (कष्ट) देते हैं – सताते हैं स्वार्थ में अन्धे बने हुए ऐसे व्यक्तियों के विवेक – चक्षु बन्द रहते हैं| उन्हें कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य का भान ही नहीं रहता| अपने कण-भर सुख के लिए वे दूसरों को मणभर दुःख पहुँचाने में भी कोई संकोच नहीं करते| अपने क्षणिक सुख के लिए दूसरों को चिरस्थायी दुःख देनेवाले इन व्यक्तियों की क्रूरता अपनी चरम सीमा पर जा पहुँचती है|

उल्लू दिन को नहीं देख सकता और कौआ रात को; परन्तु कामातुर व्यक्ति ऐसा विचित्र अन्धा होता है कि उसे न दिन को सूझता है न रात को ही| इस प्रकार भय, लज्जा, विनय, संकोच आदि गुणों का सर्वथा परित्याग करके वह दिनरात काम-भोग के उपकरण ही खोजने में लगा रहता है| इस खोज में बाधक बनने वाले – रोड़ा अटकाने वाले प्रत्येक प्राणी को वह सताता है और स्वयं भी दुःख उठाता है| ऐसी होती है आतुरता |

- आचारांग सूत्र 1/1/6

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