आतुरा परितावेंति
आतुर परिताप देते हैं
उल्लू दिन को नहीं देख सकता और कौआ रात को; परन्तु कामातुर व्यक्ति ऐसा विचित्र अन्धा होता है कि उसे न दिन को सूझता है न रात को ही| इस प्रकार भय, लज्जा, विनय, संकोच आदि गुणों का सर्वथा परित्याग करके वह दिनरात काम-भोग के उपकरण ही खोजने में लगा रहता है| इस खोज में बाधक बनने वाले – रोड़ा अटकाने वाले प्रत्येक प्राणी को वह सताता है और स्वयं भी दुःख उठाता है| ऐसी होती है आतुरता |
- आचारांग सूत्र 1/1/6
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