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शंकाशील न बनें

शंकाशील न बनें

वितिगिच्छासमावेणं अप्पाणेणं
नो लहइ समाहिं

शंकाशील व्यक्ति को कभी समाधि नहीं मिलती

साधक अपनी साधना प्रारम्भ करने से पहले सद्गुरु के प्रवचन सुनता है| उससे शास्त्रों के प्रति रुचि जागृत होती है| फिर स्वयं शास्त्रों का अध्ययन करके अपने लिए एक मार्ग चुनता है – जीवन की उत्कृष्ट पद्धति को समझता है – उस पर ऊहापोह करके, चिन्तन मनन करके अपना विश्‍वास स्थिर करता है और फिर उठकर चल पड़ता है – चलता रहता है, जब तक उसे सिद्धि प्राप्त नहीं हो जाती|

मार्ग में आनेवाले संकटों से वह घबराता नहीं है और इस प्रकार एक दिन सिद्धि प्राप्त करके – सिद्ध बनकर के ही दम लेता है| यदि किसी साधक को बीच में ही शंका पैदा हो जाये; तो उसका विश्‍वास डगमगाने लगेगा – उसकी श्रद्धा स्थिर नहीं रहेगी और उसकी शान्ति छिन जायेगी – उसकी समाधि नष्ट हो जायेगी; इसीलिए ज्ञानियों का कथन है कि साधक को मार्ग में कभी शंकाशील नहीं बनना चाहिये|

- आचारांग सूत्र 1/5/5

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1 Comment

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  1. Jashvant Shah
    अप्रैल 14, 2013 #

    Jai jinendra. Just one sentence to express my view with the help of Sutra. I regret I do not have Hindi typing facility inmy computer,so I am writing it in Transliterated in English.

    ” Samsayen Atma vineshyati. Shraddhavan labhate Gyanam “.

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