वितिगिच्छासमावेणं अप्पाणेणं
नो लहइ समाहिं
नो लहइ समाहिं
शंकाशील व्यक्ति को कभी समाधि नहीं मिलती
मार्ग में आनेवाले संकटों से वह घबराता नहीं है और इस प्रकार एक दिन सिद्धि प्राप्त करके – सिद्ध बनकर के ही दम लेता है| यदि किसी साधक को बीच में ही शंका पैदा हो जाये; तो उसका विश्वास डगमगाने लगेगा – उसकी श्रद्धा स्थिर नहीं रहेगी और उसकी शान्ति छिन जायेगी – उसकी समाधि नष्ट हो जायेगी; इसीलिए ज्ञानियों का कथन है कि साधक को मार्ग में कभी शंकाशील नहीं बनना चाहिये|
- आचारांग सूत्र 1/5/5
Jai jinendra. Just one sentence to express my view with the help of Sutra. I regret I do not have Hindi typing facility inmy computer,so I am writing it in Transliterated in English.
” Samsayen Atma vineshyati. Shraddhavan labhate Gyanam “.