माई पमाई पुण एइ गब्भं
मायावी और प्रमादी फिर से गर्भ में आते हैं
यह माया का दण्ड है – प्रमाद का परिणाम है; क्यों कि जो मायावी है और प्रमादी है, वह मुक्त नहीं हो सकता| वह संसार में फँसा ही रहता है|
माया और प्रमाद कर्म के उत्पादक हैं| माया माता है और प्रमाद पिता| दोनों से कर्मबन्ध का जन्म होता है| जो प्राणी संसार में परिभ्रमण से श्रान्त हो चुके हैं – थक गये हैं और इससे मुक्त होना चाहते हैं, उन्हें माया और प्रमाद का परित्याग करना चाहिये; क्यों कि मायावी और प्रमादी ही पुनः गर्भ में आते हैं|
- आचारांग सूत्र 1/3/1
No comments yet.
Leave a comment