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जो उत्थित हैं, वे प्रमाद न करें

जो उत्थित हैं, वे प्रमाद न करें

उट्ठिए, नो पमायए
जो प्रसुप्त है, उसे जागृत होना चाहिये| जो जागृत हो चुका है, उसे उत्थित होना चाहिये अर्थात् शय्या छोड़ कर उठ बैठना चाहिये और जो उत्थित हो चुका है, उसे प्रमाद नहीं करना चाहिये अर्थात् उसे खड़े होकर साधना के पथ पर – सन्मार्ग पर चल पड़ना चाहिये; क्यों कि चलते-चलते ही अर्थात् सदाचार का सम्यक्पालन करते हुए ही कोई साधक अपनी साधना में सफल हो सकता है – सिद्धि का लक्ष्य प्राप्त करके सिद्ध बन सकता है; अन्यथा नहीं|

प्रमाद साधना के बीच में दीवार बन कर खड़ा हो जाता है| वह उत्थित को खड़े होने से और खड़े हुए को चलने से रोकता है| प्रमाद ही है, जो प्रसुप्त के जागरण को निष्फल बना देता है| प्रमाद ही है, जो जागृत के उत्थान को व्यर्थ बना देता है|

अतः साधना में निश्‍चित सफलता का उपाय प्रदर्शित करते हुए अनुभवी ज्ञानियों ने कहा है कि जो उत्थित हैं, वे प्रमाद न करें !

- आचारांग सूत्र 1/5/2

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1 Comment

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  1. Jashvant Shah
    अप्रैल 14, 2013 #

    Jai jinendra.

    ” Jo jagat hai so pavat hai. Jo sovat hai so khovat hai “.

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