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मृत्यु का आगमन

मृत्यु का आगमन

नत्थि कालस्स णागमो

मृत्यु किसी भी समय आ सकती है

मृत्यु! कितना भयंकर शब्द है यह? कौन इसे पाना चाहता है? कोई नहीं! घर में किसी की मृत्यु हो जाये तो सारा परिवार शोकसागर में निमग्न हो जाता है| गुरुदेव परमधाम पहुँच जायें तो शिष्यमण्डल पर शोक सवार हो जाता है और शिष्य की मृत्यु पर गुरु का हृदय तड़प उठता है| पत्नी की मृत्यु पर पति विधुर हो जाता है तो पति की मृत्यु पर पत्नी वैधव्यकी आग में जलने लगती है| राजा की मृत्यु पर प्रजा में या राष्ट्रपति की मृत्यु पर सारे देश में हाहाकार मच जाता है| इस प्रकार मृत्यु सबको रुलाती है – अनिष्ट लगती है; फिर भी है वह अनिवार्य| जिसका जन्म होता है, उसकी मृत्यु भी अवश्य होती है|

फिर भी संयम और तप से आत्मा को पवित्र करनेवाले केवलज्ञानी मुक्त होकर मृत्यु के कष्ट से सदा के लिए बच जाते हैं| मोक्ष मृत्यु से बचने का उपाय है| मुमुक्षु इसीलिए निरन्तर धर्माचरण करते रहते हैं – आत्म-कल्याण का प्रयास करते रहते हैं| वे सोचते हैं कि पता नहीं, कब हो जाये मृत्यु का आगमन|

- आचारांग सूत्र 1/2/3

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