सुत्ता अमुणी, मुणीणो सया जागरंति
जो सुप्त हैं, वे अमुनि है मुनि तो सदा जागते रहते हैं
इसके विपरीत जो मुनि हैं, साधु हैं; साधना के पथ पर चलनेवाले हैं, वे सदा जागृत रहते हैं – उनके विवेकचक्षु खुले रहते हैं – कोई न कोई कर्तव्य सदा उनके सामने खड़ा रहता है| एक कर्त्तव्य पूरा होने पर दूसरा और दूसरे के बाद तीसरा सामने आता रहता है और वे उसका पालन करने में निरन्तर व्यस्त रहते हैं|
इसी दृष्टि से कहा गया है कि अमुनि सदा सुप्त रहते हैं और साधु सदा जागृत|
- आचारांग सूत्र 1/3/1
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