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क्षमा – सच्चा अमृत

क्षमा   सच्चा अमृत
‘‘क्षमा’’ ही सच्चा अमृत है’’, इस बात को सभी विद्वानोंने मान्य कर दी| बस, संवत्सरी पर्व का आलंबन लेकर शक्कर – इलायची के पानी से भी अधिक मधुरतावाले क्षमामृत के प्याले ही भर भर के पीओ और पिलाओ|

हर एक व्यक्ति में कोई न कोई दोष तो है ही, चलो, हम उसे माफ कर देते हैं|

हर एक व्यक्ति में कोई न कोई विचित्रता होती ही है, चलो, हम उसे निभा लेते हैं|

हर एक व्यक्ति कुछ न कुछ बूरी आदत से ग्रस्त ही होगा, चलो, हम उसको सहन कर लेते हैं|

हर एक व्यक्ति को कोई न कोई चीज़ के प्रति जुगुप्सा व तिरस्कारभाव होगा ही, चलो, हम उस व्यक्ति को उस चीज़ से दूर रखें|

हर एक व्यक्ति के अपने अपने सिद्धांत-मान्यता व मत होते ही हैं, चलो, हम उसका आदर करें|

हर एक व्यक्ति में कोमल भावों का एक झरना तो बहता ही है, चलो, हम उसकी कद्र करें|

पर्वाधिराज पर्युषण समयतीर्थ है…..कालतीर्थ है| यदि उस तीर्थमें यथार्थ आराधना करनी हैं, तो सबसे पहले अत्यंत निकट स्वरूप अपनी आत्माकी क्षमा याचना करो| क्योंकि साल भरमें उसकी कोई परवाह ही नहीं की, उसे क्षणभर भी मिले नहीं हैं, कभी उसके हिताहित का विचार नहीं किया और एक मात्र विषय-कषाय के विचार, व्यवहारआदि करके उसे परेशान करने का कार्य किया है|

अब आईए परमात्मा के पास| परमात्मा की कृपा से मीली यह मानवभवादि तमाम सामग्री का परमात्मा की आज्ञा विरुद्ध कहॉं कहॉं, और किस तरह दुरुपयोग किया है ? किस तरह प्रभुआज्ञा का उल्लंघन, उपेक्षा की हैं ? सब याद कर के सभी अपराधो का स्वीकार करके क्षमा याचना करें|

बादमें गुरुभगवंत के पास आकर उनके प्रति जो अविनय, अपराध हुआ हो, उनका उपदेश नहीं सुना या सुनने के बावजूद यथाशक्ति पालन नहीं किया, इत्यादि अपराधों के लिए गुरुभगवंतो को मिच्छामि दुक्कडं दीजिए| बादमें अति निकट के व्यक्तिसे शुरु करके आखिर में दूर दूर के परिचित व्यक्तिओं तक की क्षमा याचना करें….. इस तरह की हुई क्षमायाचना यथार्थ होगी|

यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
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1 Comment

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  1. Smita
    अग॰ 14, 2016 #

    And the essence of Jain philosophy esp. With Paryushan arriving soon !

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