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तुम्हारे हाथ से डूब जाऊं तो भी उबर जाऊँ

तुम्हारे हाथ से डूब जाऊं तो भी उबर जाऊँ
अब तु ले चलो उस पार| अपने से तो यह न हो सकेगा| यह भवसागर बड़ा है| दूसरा किनारा दिखाई भी नहीं पड़ता है|

हां, तुम्हारा प्रे का हाथ आ जाए तो मैं कहीं भी जाने को तैयार हूं| दूसरा किनारा न हो तो जाने को तैयार हूं| तुम्हारा हाथ काङ्गी है| तु बीच मझधार में डुबा दो तो राजी हूं, क्योंकि तुम्हारे हाथ से डूब जाऊं तो भी उबर जाऊँ|

संसारतारकविभो ! जीवनाधिनाथ !

यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
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1 Comment

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  1. Anil Doshi
    मई 27, 2013 #

    Very Nice..

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