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इच्छाएं कम करो

इच्छाएं कम करो

अप्पिच्छे सुहरे सिया
जीवन का घट पल-पल खाली हो रहा है उसी के साथ मन की इच्छाओं को कम करना होगा…. हमारी सारी आवश्यकताएं तो प्रकृति स्वतः पूरी कर देती है…. जरूरतों की पूर्ति में तो कोई झंझट है ही नहीं|

जब आवश्यकता इच्छा बन जाती है तब ‘चाहिए’ वाली कैसेट भीतर में चलनी शुरु हो जाती है| परिणाम स्वरूप ‘यह चाहिए वह चाहिए’ की प्रवृत्ति शुरु हो जाती है|

सम्पन्न व्यक्ति वह है जिसे चाह नहीं है…. चाह के साथ अशान्ति है|

रोज अपने भीतर में जन्म लेने वाली चाहतों को समझ के द्वारा सीमित करो और सीमित इच्छाओं को शीघ्र सहयोग मत दो|

यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
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