अप्पिच्छे सुहरे सिया
जब आवश्यकता इच्छा बन जाती है तब ‘चाहिए’ वाली कैसेट भीतर में चलनी शुरु हो जाती है| परिणाम स्वरूप ‘यह चाहिए वह चाहिए’ की प्रवृत्ति शुरु हो जाती है|
सम्पन्न व्यक्ति वह है जिसे चाह नहीं है…. चाह के साथ अशान्ति है|
रोज अपने भीतर में जन्म लेने वाली चाहतों को समझ के द्वारा सीमित करो और सीमित इच्छाओं को शीघ्र सहयोग मत दो|
यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
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