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कषाय-निग्रह

कषाय निग्रह

चत्तारि एए कसिणा कसाया
आत्मा को मलिन बनाने वाला तत्त्व कषाय है| क्रोध, मान, माया और लोभ ऐसे विकार हैं जो हमारी आत्मा को विकलांग बना रहे हैं|

कहते हैं क्रोधी व्यक्ति अन्धा होता है उसे कुछ सूझता नहीं| मानी व्यक्ति किसी की कुछ सुनता नहीं| मायावी व्यक्ति की जुबान का कोई भरोसा नहीं होता और लोभी की तो नाक ही कट जाती है| अर्थात् क्रोध ने हमारी आँखे छीन ली क्योकि उसके आते ही मनुष्य अंधा हो जाता है| मान ने मनुष्य के कान छीन लिए, माया ने हमारी जिह्वा के अर्थ बदल दिए और लोभ ने तो नाक ही कटवा दी|

जरा कल्पना करके देखिए मनुष्य के उस रूप की…जिसकी न आँख हों…न कान हो…न जिह्वा हो…नाक भी कटी हुई हो…|

काषायिक परिणति में जीने वाले मनुष्य का आन्तरिक व्यक्तित्व ऐसा ही विकलांग होता है| अतः भगवान कहते हैं अपने आन्तरिक व्यक्तित्व को यदि सँवारना चाहते हो तो कषायों का निग्रह करो|

यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
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1 Comment

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  1. Sugyan Modi
    अप्रैल 15, 2013 #

    सत्यवचन.

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