चत्तारि एए कसिणा कसाया
कहते हैं क्रोधी व्यक्ति अन्धा होता है उसे कुछ सूझता नहीं| मानी व्यक्ति किसी की कुछ सुनता नहीं| मायावी व्यक्ति की जुबान का कोई भरोसा नहीं होता और लोभी की तो नाक ही कट जाती है| अर्थात् क्रोध ने हमारी आँखे छीन ली क्योकि उसके आते ही मनुष्य अंधा हो जाता है| मान ने मनुष्य के कान छीन लिए, माया ने हमारी जिह्वा के अर्थ बदल दिए और लोभ ने तो नाक ही कटवा दी|
जरा कल्पना करके देखिए मनुष्य के उस रूप की…जिसकी न आँख हों…न कान हो…न जिह्वा हो…नाक भी कटी हुई हो…|
काषायिक परिणति में जीने वाले मनुष्य का आन्तरिक व्यक्तित्व ऐसा ही विकलांग होता है| अतः भगवान कहते हैं अपने आन्तरिक व्यक्तित्व को यदि सँवारना चाहते हो तो कषायों का निग्रह करो|
यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
सत्यवचन.