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जीवन को थोड़े रंग दो

जीवन को थोड़े रंग दो
जीवन को वैसा ही मत छोड़ो जैसा तुने पाया था| जीवन को कुछ सुंदर करो| उठाओ तूलिका, जीवन को थोड़े रंग दो| उठाओ वीणा, जीवन को थोड़े स्वर दो| पैरों में बांधों घूंघर, जीवन को थोड़ा नृत्य दो| प्रे दो, प्रीति दो! तोड़ो उदासी| जीवन को थोड़ा उत्सव से भरो|

तुम जितने सृजनात्मक हो जाओगे उतना ही तु पाओगे, तु परमात्मा के करीब आने लगे, क्योंकि परमात्मा अर्थात् सृजनात्मकता| उसके करीब आने का एक ही उपाय है – सृजन|

कवि, चित्रकार, मूर्तिकार कहीं ज्यादा करीब होता है, परमात्मा के| चित्रकार जब चित्र बनाने में बिलकुल लवलीन हो जाता है, तल्लीन हो जाता है, भूल ही जाता है अपने को – तब यह प्रार्थना का क्षण है|

तुम सृजन की किसी प्रक्रिया में अपने को पूरा गला दो, पिघला दो, मिटा दो| जैसे कि, कोई कवि, चित्रकार, या मूर्तिकार…तोड़ो उदासी| जीवन को थोड़ा उत्सव से भरो…

यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
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